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Thursday, June 23, 2011

आपके जीवन में एक कोई भी शुभ कार्य (यात्रा ,मुंडन ,जनेऊ ,बिद्या प्राप्ति या विवाह )करना हो तो प्राय: हम पंडितों के पास मुहूर्त बिचारवाने के लिए निकल पड़ते है !हमें पंडित जो भी गलत या सही बताएं ,उस पर हम आँख मूंदकर क्रियान्वयन शुरू कर देते हैं !हम आपको इस सूत्र में मुहूर्त के उपयोग और महत्त्व पर प्रकाश डालेंगे और आशा करते हैं कि इस मंच का आप लोगों को यह एक अद्वितीय तोहफा के रूप में स्वीकार होगा !



मुहूर्त विचार




आम भाषा में हम जिसे शुभ और अशुभ समय कहते हैं ज्योतिषशास्त्र की भाषा में वह समय ही मुहूर्त कहलाता है!


ज्योतिषशास्त्र कहता है किसी भी कार्य की सफलता की आधी गारंटी तभी मिल जाती है जब कोई कार्य शुभ मुहूर्त में किया जाता है.यही कारण है कि हमें जीवन में मुहूर्त का ध्यान रखकर कोई कार्य शुरू करना चाहिए!


जैसे किसी रोग विशेष के लिए विशेष दवाई खानी होती है ठीक उसी प्रकार कार्य विशेष के लिए अलग अलग शुभ मुहूर्त होता है!


प्राचीन काल में यज्ञादि कार्यों के लिए मुहूर्त का विचार किया जाता था परंतु जैसे जैसे मुहूर्त की उपयोगिता और विलक्षणता से हम मनुष्य परिचित होते गये इसकी उपयोगिता दैनिक जीवन में बढ़ती चली गयी!


मुहूर्त में विश्वास रखने वाले व्यक्ति कोई भी कदम उठाने से पहले मुहूर्त का विचार जरूर करते हैं!


जिन व्यक्तियो की जन्म कुण्डली नहीं है या उनमें किसी प्रकार का कोई दोष है वैसे व्यक्तियों के लिए भी मुहूर्त बहुत अधिक लाभप्रद होता है. अक्सर देखा गया है कि ऐसे व्यक्ति भी शुभ मुहूर्त में कार्य करके सफल हुए हैं !


आम जीवन में मुहूर्त के महत्व पर ज्योतिषशास्त्र कहता है कि जिन व्यक्तियों की कुण्डली उत्तम है वह भी अगर शुभ मुहूर्त का विचार करके कार्य नहीं करें तो उनकी सफलता में भी बाधा आ सकती है !


अत: मुहूर्त हर किसी के लिए आवश्यक है. विवाह के संदर्भ में तो मुहूर्त का विचार बहुत ही आवश्यक माना गया है. विवाह को नया जन्म माना जाता है, यह नया जीवन कैसा होगा वर वधू के जीवन में किस प्रकार की स्थिति रहेगी यह सब विवाह मुहूर्त देखकर ज्ञात किया जा सकता है.


मुहूर्त के लिए आवश्यक तत्व 




ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मुहूर्त विचार में तिथि के साथ लग्न और नक्षत्र विचार भी आवश्यक होता है.


01= अगर आपको शुभ कार्य करना है तो शुभ और कोमल नक्षत्र में कार्य शुरू करना चाहिए इसी प्रकार

02= क्रूर कार्य के लिए कठोर और क्रूर नक्षत्रों का विचार किया जाना चाहिए.

03= सफल मुहूर्त के लिए लग्न का शुद्ध होना भी आवश्यक माना गया है अत: मुहूर्त का विचार करते समय लग्न की शुद्धि का भी ध्यान रखना चाहिए अगर नवमांश भी शुद्ध हो तो इसे सोने पे सुहागा कहा जाना चाहिए.



ध्यान देने वाली बात है कि मुहूर्त की सफलता के लिए यह देखना चाहिए कि अष्टम भाव में कोई ग्रह नहीं हो और लग्न स्थान में शुभ ग्रह विराजमान हो.


अगर ऐसी स्थिति नहीं बन रही है तो देखना चाहिए कि त्रिकोण एवं केन्द्र में शुभ ग्रह हों तथा तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में पाप ग्रह हों. उत्तम मुहूर्त का विचार करते समय यह भी देखना चाहिए कि लग्न, चन्द्रमा और कार्य भाव पाप कर्तरी में नहीं हों अर्थात लग्न चन्द्र से दूसरे तथा बारहवें भाव में पाप ग्रह नहीं हों.



मुहूर्त में सावधानी



मुहूर्त के अन्तर्गत कुछ विशेष प्रकार की सावधानियों का जिक्र किया गया है, जिसके अनुसार


01= रिक्ता तिथियों यानी चतुर्थी, नवमी एवं चतुदर्शी के दिन रोजगार सम्बन्धी कोई भी नया काम नहीं शुरू करना चाहिए. शुभ एवं मांगलिक कार्य अमावस्या तिथि में शुरू नहीं करना चाहिए !


02= रविवार, मंगलवार एवं शनिवार के दिन समझौता एवं सन्धि नहीं करनी चाहिए!


03= दिन, तिथि व नक्षत्र का योग जिस दिन 13 आये उस दिन उत्सव का आयोजन नहीं करना चाहिए.


04= नन्दा तिथियों एवं प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी तिथि के दिन नवीन योजना पर कार्य शुरू नहीं करना चाहिए.


05= कोई ग्रह जब उदय या अस्त हो तो उसके तीन दिन पहले और बाद में नया काम नहीं करना चाहिए.


06= जन्म राशि और जन्म नक्षत्र का स्वामी जब अस्त, वक्री अथवा शत्रु ग्रहों के बीच हों तब आय एवं जीवन से जुड़े विषय को विस्तार नहीं देना चाहिए.


07= मुहूर्त में क्षय तिथि का भी त्याग करना चाहिए. असफलता से बचने के लिए जन्म राशि से चौथी, आठवीं, और बारहवीं राशि पर जब चन्द्र हो उस समय नया काम शुरू नहीं करना चाहिए.


08= देवशयन काल में बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं दिलाना चाहिए.


09= बुधवार के दिन उधार देना व मंगलवार को उधार लेना मुहूर्त की दृष्टि से शुभ नहीं माना गया है.


10= नये वाहन खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए कि आपकी राशि से चन्द्रमा घात राशि पर मौजूद नहीं हो.


मुहूर्त सार 


जीवन में मुहूर्त के महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता है. किसी व्यक्ति की सफलता, असफलता और जीवन स्तर में परिवर्तन के संदर्भ में मुहूर्त की महत्ता को अलग नहीं किया जा सकता है!


हमारे जीवन से जुड़े 16 संस्कारों एवं दैनिक कार्यकलापों के संदर्भ में भी मुहूर्त की बड़ी मान्यता है जिसे हमें स्वीकार करना होगा!




हम यूँ तो किसी भी काम को करने से पहले मुहूर्त देखते हैं लेकिन कुछ मुहूर्त ऐसे होते हैं जो हमेशा शुभ ही होते हैं। नीचे दिए गए मुहूर्त स्वयं सिद्ध माने गए हैं जिनमें पंचांग की शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है-

1 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा

2 वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया)

3 आश्विन शुक्ल दशमी (विजय दशमी)

4 दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग।



भारत वर्ष में इनके अतिरिक्त लोकचार और देशाचार के अनुसार निम्नलिखित तिथियों को भी स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना जाता है-

1 भड्डली नवमी (आषाढ़ शुक्ल नवमी)

2 देवप्रबोधनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी)

3 बसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी)

4 फुलेरा दूज (फाल्गुन शुक्ल द्वितीया)

इनमें किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है। परंतु विवाह इत्यादि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्तों को ही स्वीकार करना श्रेयस्कर रहता है।



तुला शुक्र की राशि है (Venus is the lord of Libra). मूहूर्त साधन में यह प्रेम और मांगलिक कार्यों में शुभ परिणाम दायक होता है.कृषि सम्बन्धी कार्य इस लग्न में शुभ होता है.कारोबार एवं व्यवसाय के लिए भी यह शुभ लग्न है.इस लग्न में तीर्थ यात्रा एवं किसी विशेष कार्य हेतु यात्रा किया जा सकता है.संचय और भण्डारण के लिए तुला लग्न शुभ परिणामदायक होता है.इस लग्न में धन का निवेश लाभकारी माना जाता है.


वृश्चिक मंगल की राशि(sign of Mars) है.इस राशि में ओज, साहस और पराक्रम का समावेश होता है.मुहूर्त के अनुसार इस लग्न के दौरान सरकारी काम को पूरा कर सकते हैं.साहसिक कार्यो के लिए मुहूर्त शास्त्र में इस लग्न को उत्तम बताया गया है.कठिन कार्यो को पूरा करने के लिए भी यह लग्न श्रेष्ठ माना गया है. राज्यारोहण एवं शत्रुओं से बदला लेने के लिए इस मुहूर्त का प्रयोग किया जा सकता है.


धनु गुरू की राशि(sign of Jupiter) है.इस राशि में मांगलिक कार्य (auspicious work) संपादित किये जा सकते हैं.विवाह के लिए इस लग्न को शुभ माना गया है.इस लग्न में धार्मिक यात्राएं एवं कारोबार के प्रयोजन से यात्रा का विचार किया जा सकता है. भूमि का स्वामित्व प्राप्त किया जा सकता है.यज्ञों एवं धार्मिक कार्यो का आयोजन किया जा सकता है.वाहन खरीदने के लिए भी इसे श्रेष्ठ लग्न माना गया है.


मकर शनि की राशि है (Saturn is the lord of Capricorn). इस लग्न में घर का निर्माण किया जा सकता है.खेती से सम्बन्धित कार्य किये जा सकते हैं.जल क्षेत्र से सम्बन्धित कार्य के लिए भी यह लग्न शुभकारी होता है.जलयात्रा का विचार इस लग्न में किया जा सकता है.पशुओं के कारोबार एवं उनसे सम्बन्धित कार्य के लिए मकर लग्न का प्रयोग अनुकूल परिणामदायक होता है.


कुम्भ राशि का स्वामी भी शनि है (Saturn is the lord of Aquarius). जल क्षेत्र से सम्बन्धित कार्य के लिए यह उत्तम लग्न माना गया है.इस लग्न में जलयात्रा का विचार कर सकते हैं.संग्रह कर सकते हैं.शपथ पत्र पर हस्ताक्षर कर सकते हैं.यात्रा की योजना भी इस लग्न में किया जा सकता है.वाहन खरीदने के लिए भी इस लग्न का प्रयोग किया जा सकता है.


गुरू बृहस्पति मीन लग्न के स्वामी है (Jupiter is the lord of Pisces).मुहूर्त साधना में मीन लग्न के अन्तर्गत शिक्षा एवं ज्ञानार्जन से सम्बन्धित कार्य किये जा सकते हैं.विवाह प्रसंग में भी मीन शुभकारी होता है.जलीय वस्तुओ का कारोबार एवं इससे सम्बन्धित कार्य मीन लग्न में अनुकूल होता है.कृषि कार्य के लिए मीन लग्न को शुभ कहा गया है.यात्रा के लिए इसे उत्तम लग्न माना गया है.पशुओं से सम्बन्धित कार्य एवं पशुपालन के लिए मीन उत्तम मुहूर्त होता है.


वार और तिथि से बनने वाला योग - सिद्धयोग 

अगर योग अनुकूल होता है तो शुभ कहलाता है और अगर कार्य की दृष्टि से प्रतिकूल होता है तो अशुभ कहलाता है। यहां हम दिन और तिथि के मिलने से बनने वाले सिद्ध योग की बात करते हैं जो शुभ कार्य के लिए उत्तम माना जाता है।
सिद्ध योग का निर्माण किस प्रकार होता है सबसे पहले इसे जानते हैं।

1. अगर शुक्रवार के दिन नन्दा तिथि अर्थात प्रतिपदा, षष्ठी या एकादशी पड़े तो बहुत ही शुभ होता है ऐसा होने पर सिद्धयोग का निर्माण होता है।

2.भद्रा तिथि यानी द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी अगर बुधवार के दिन हो तो यह सिद्धयोग का निर्माण करती है।

3.जया तिथि यानी तृतीय, अष्टमी या त्रयोदशी अगर मंगलवार के दिन पड़े तो यह बहुत ही मंगलमय होता है इससे भी सिद्धयोग का निर्माण होता है।

4.ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत चतुर्थ, नवम और चतुर्दशी को रिक्ता तिथि के नाम से जाना जाता है अगर शनिवार के दिन रिक्ता तिथि पड़े तो यह भी सिद्धयोग का निर्माण करती है।

5.पंचमी, दशमी, पूर्णिमा, अमावस को ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत पूर्णा तिथि के नाम से जाना जाता है। पूर्णा तिथि बृहस्पतिवार के दिन उपस्थित होने से भी सिद्ध योग बनता है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सिद्धयोग बहुत ही शुभ होता है। इस योग के रहते कोई भी शुभ कार्य सम्पन्न किया जा सकता है, यह योग सभी प्रकार के मंगलकारी कार्य के लिए शुभफलदायी कहा गया है।



शपथ ग्रहण करने का मुहुर्त 

प्राचीन काल में राज हुआ करते थे। राजगद्दी पर बैठने से पहले राजाओं का राज्याभिषेक होता था, राजा इस अवसर पर जनता की देखभाल अपने पुत्र के समान करने की सौगंध लेते थे, व राष्ट्रहित में कोई भी निर्णय लेने का वादा करते थे।
आज राजतंत्र समाप्त हो चला है और प्रजातंत्र स्थापित हो गया है !

ऐसे में राजा भले ही न रहे परन्तु शपथ की प्रथा आज भी कायम है। आज चुनाव के पश्चात लोक सभा, विधान सभा, राज्य सभा के सदस्य शपथ ग्रहण करते हैं. इनकी तरह सम्पूर्ण शासनतंत्र में कई ऐसे पद होते हैं जिनके लिये पद और गोपनियता की शपथ लेनी होती है। पद की शपथ लेना बहुत ही शुभ कार्य है, इस शुभ कार्य को शुभ मुहुर्त में करें तो उत्तम रहता है



"कला संगीत के लिए मुहुर्त विचार"

संगीत हो नृत्य या अभिनय हो अगर आप इसमें सफलता की इच्छा रखते हैं तो इसकी उपासना करनी होती है। भारतीय दर्शन में इन कलाओं को ईश्वर का आशीर्वाद माना जाता है जो बहुत ही भाग्यशाली व्यक्तियों को प्राप्त होता है ।

ज्योतिषशास्त्री मानते हैं कि जैसे आप किसी भी शुभ कार्य के लिए मुहुर्त देखते हैं उसी प्रकार आपको कला संगीत एवं अभिनय के क्षेत्र में कदम बढ़ाने से पहले मुहुर्त का विचार जरूर करना चाहिए। जानें कि नृत्य, संगीत एवं कला के क्षेत्र में किस मुहुर्त में प्रयास करें ताकि आपको अपने प्रयास में सफलता प्राप्त हो।

जब आप संगीत, नृत्य या अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने जा रहे उस समय देख लें कि नक्षत्र मृगशिरा, रेवती, अनुराधा , हस्त , पुष्य , पूर्वाफाल्गुनी, ज्येष्ठा , और उत्तराषाढ़ा, हो क्योंकि यह नक्षत्र संगीत, नृत्य व अभिनय सीखने के लिए अति उत्तम माने गये हैं।



ट्यूबबेल लगाने या टैंक खोदने का मुहुर्त 
धर्मग्रंथो में बताया गया है कि जल के देवता वरूण (Varuna) हैं। वरूण देव की कृपा से जल की प्राप्ति होती है। कई बार देखा जाता है कि ट्यूबबेल लगाने के बाद उससे पानी नहीं आता है या बहुत सीमित मात्रा में आता है जिससे उस ट्यूबबेल को उखाड़ कर फिर से लगाना पड़ता है या तालाब में भरपूर पानी नहीं आता है अथवा पानी कसैला होता है। 

इस तरह की स्थिति का सामना नहीं करना पड़े इसके लिए मुहूर्त का विचार करके ट्यूबबेल या तालाब खोदना चाहिए। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ट्यूबबेल या तालाब खोदने के लिए कौन सा मुहुर्त शुभ होता है और यह मुहुर्त किस प्रकार ज्ञात किया जा सकता है इस विषय पर चर्चा करें।



1.नक्षत्र विचार 

ट्यूबबेल या टैंक खोदने के लिए उत्तराफाल्गुनी उत्तराषाढ़ा , उत्तराभाद्रपद , रोहिणी अनुराधा, घनिष्ठा, हस्त शतभिषा मघा, पूर्वाषाढा , रेवती ,मृगशिरा और पुष्य नक्षत्र को शुभ माना गया है। इन नक्षत्रों में से किसी में भी जल के लिए ज़मीन खोदना उत्तम रहता है।

2.लग्न विचार 

ज्योतषशास्त्री बताते है कि ट्यूबबेल लगाने या तालाब खोदने के लिए लग्न की स्थिति भी देखनी चाहिए । जिस दिन आप आप यह कार्य करने जा रहे हैं उस दिन अगर लग्न बलवान हो, बुध या बृहस्पति लग्न में स्थित हो या शुक्र दशम भाव में हो और चन्द्रमा कर्क वृश्चिक या मीन राशि में हो तो खुदाई करने के लिए उत्तम योग होता है।

3.तिथि विचार 

चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी ये रिक्ता तिथि कहे जाते हें अत: इन तिथियों को छोड़कर किसी भी तिथि में ट्यूबबेल लगाया जा सकता है और तालाब खुदवाया जा सकता है।



समझौता करने का मुहुर्त

कहते हैं कि लकड़ी को जितना काटा जाता है वह उतना ही पतली होती जाती है और बातों को जितना काटा जाय वह उतना ही मोटा होता जाता है। कहावत का तात्पर्य है कि लड़ाई झगड़े से कुछ हासिल नहीं होता है जितना ही बातों को बढ़ाएंगे मनमुटाव उतना ही बढ़ता जाएगा। मनमुटाव व संधर्ष को समाप्त करने का एक आसान से तरीका है समझौता । 

ज्योतिषशास्त्री कहते हैं कि समझौता करने से पहले मुहुर्त का विचार अवश्य करना चाहिए। मुहुर्त का विचार करके अगर आप समझौता करते है तो समझौता परस्पर मित्रता को बढ़ाता है व लम्बे समय तक कायम रहता है इसलिए समझौता करने से पहले आपको मुहुर्त का आंकलन अवश्य कर लेना चाहिए । समझौता के लिए कौन सा मुहुर्त अच्छा होता है और मुहुर्त का आंकलन कैसे करना चाहिए आइये इसे देखें।


1.नक्षत्र विचार:

भारतीय ज्योतिष पद्धति के अनुसार समझौता करने के लिए पुष्य, अनुराधा और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र अनुकूल होते हैं । जब आप समझौता करने की योजना बनाएं तो ध्यान रखें कि जिस दिन आप समझौता करने जा रहे हैं उस दिन उपरोक्त नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र वर्तमान हो।

2.वार विचार:


सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार समझौता करने के लिए शुभ माने गये हैं । जिस दिन आप समझौता करने जा रहे हैं उस दिन इन चारों वारों में से काई वार हो यह जरूर देख लें।

3.तिथि विचार:

समझौता करने के लिए जब आप पहल करें तब नक्षत्र, वार का विचार करने के पश्चात तिथि का आंकलन भी करना चाहिए। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार समझौता के लिए अष्टमी और द्वादशी तिथि बहुत ही शुभ होती है अत: इस तिथि के रहते समझौता करना चाहिए।

4.लग्न विचार:

समझौता करने के लिए लग्न क्या कहता है यह भी देखना चाहिए। उपरोक्त स्थिति हो और लग्न भी शुभ हो तो समझौता करने के लिए पहल की जा सकती है। लग्न पर अगर शुक्र की दृष्टि हो तो यह और भी उत्तम स्थिति मानी जाती है। 



दुकान खोलने का मुहुर्त 


जो भी व्यक्ति दुकान खोलते हैं उनकी आशा यही रहती है कि उनकी दुकान खूब चले। परंतु हर व्यक्ति की यह आश पूर्ण नहीं हो पाती है। दुकान खोलने वालों में कई ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हें किन्ही कारणों से अपनी दुकान कुछ महीनों में बंद कर देनी पड़ती है !
ज्योतिषशास्त्री कहते हैं कि अगर आप दुकान खोलते समय मुहुर्त का विचार नहीं करें और अशुभ मुहुर्त में दुकान खोलें तो इस प्रकार की घटनाएं घटती हैं। 

जब आप दुकान खोलने का विचार मन में लाएं उस समय सबसे पहले मुहुर्त पर अच्छी तरह विचार करलें । मुहुर्त जब शुभ हो तभी आप दुकान खोलने की सोचें अन्यथा शुभ मुहुर्त के आने की प्रतीक्षा करें। आइये अब देखें कि दुकान खोलने के लिए कौन सा मुहुर्त शुभ है और इस संदर्भ में मुहुर्त किस प्रकार देखना चाहिए।

1.नक्षत्र विचार 

दुकान खोलने के लिए जब मुहुर्त का आंकलन किया जाता है तब सबसे पहले नक्षत्र का विचार किया जाता है।

दुकान खोलने के लिए सभी स्थिर नक्षत्र जैसे उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी तथा सभी सौम्य नक्षत्र जैसे मृगशिरा, रेवती चित्रा,अनुराधा व लघु नक्षत्र जैसे हस्त, अश्विनी,पुष्य और अभिजीत नक्षत्रों को दुकान खोलने के लिए शुभ माना जाता है।

2.लग्न विचार 

नक्षत्र विचार करने के बाद आप लग्न से विचार करें। ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार जिस समय आप दुकान खोलने जा रहे हैं उस समय मुहुर्त का लग्न बलवान होना चाहिए। लग्न में चन्द्र-शुक्र हो तो यह सर्वोत्तम स्थिति मानी जाती है। लग्न की शुभता का विचार करने के लिए देखें कि लग्न से द्वितीय, दशम एवं एकादश भाव में शुभ ग्रह हो तथा अष्टम व द्वादश भाव में कोई अशुभ ग्रह ना हों।

3.तिथि विचार 


दुकान खालने के लिए जब आप मुहुर्त निकालें उस समय उपरोक्त सभी विषयों पर विचार करने के साथ ही तिथि का भी विचार करना चाहिए। ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार दुकान खोलने के लिए सभी तिथि शुभ हैं परंतु रिक्ता तिथि यानी (चतुर्थ, नवम व चतुर्दशी) अपवाद स्वरूप हैं अत: इन तिथियो में दुकान नहीं खोलना चाहिए.

4.वार विचार 

आप दुकान खोलने जा रहे हैं तो ध्यान रखें कि मंगलवार को दुकान नहीं खोलें । मंगल के अलावा आप किसी भी दिन दुकान खोल सकते हैं।

5.निषेध 

जिस दिन गोचरवश चन्द्रमा जन्म के समय जिस राशि में था उस राशि से चतुर्थ, अष्टम अथवा द्वादश भाव में उपस्थित हो तथा तृतीय भाव, पंचम भाव एवं सप्तम भाव में तारा हो एवं भद्रा या अन्य अशुभ योग हो तो दुकान नहीं खोलना चाहिए!




दग्ध योग




जिस तरह वार और तिथि के संयोग से योग का निर्माण होता है उसी प्रकार वार और नक्षत्र का संयोग होने पर योग का निर्माण होता है। 

नक्षत्रों की संख्या 27 हैं इन नक्षत्रों का जिस वार के साथ संयोग होता है उसी प्रकार उनका शुभ अथवा अशुभ प्रभाव हमारे ऊपर होता है।

नक्षत्र एवं वार के संयोग से बनने वाले योगों के क्रम में सबसे पहले हम अशुभ दग्ध योग की बात करें। आपने वार और तिथि से बनने वाले योग को देखा होगा तो आपको पता होगा कि तिथि और वार के संयोग से भी दग्ध योग बनता है। नक्षत्र और तिथि से बनने वाला दग्ध योग और तिथि से बनने वाला दग्ध योग अलग अलग है परंतु परिणाम में दोनों ही सगे सम्बन्धी यानी समान हैं।

आइये अब नक्षत्र एवं वार के मिलन से बनने वाले दग्ध योग पर एक नज़र डालें।

1.रविवार के दिन जब भरणी नामक नक्षत्र पड़ता है तब यह योग बनता है।

2. चित्रा नक्षत्र जब सोमवार के दिन पड़ता तब वह दिन दग्ध योग के प्रभाव में माना जाता है।

3.उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का संयोग जब मंगलवार से होता है तो इस योग का प्रादुर्भाव होता है।

4.बुधवार के दिन जब घनिष्ठा नक्षत्र आये तो यह अशुभ संयोग होता है क्योंकि इससे दग्ध योग बनता है।

5.बृहस्पतिवार के दिन जब उ.फा. नक्षत्र हो तो वह दिन भी शुभ कार्य के लिए वर्जित होता है, कारण यह है कि इस स्थिति में भी दग्ध नामक अशुभ योग बनता है।

6.ज्येष्ठा नाम नक्षत्र जब गोचरवश शुक्रवार के दिन पड़ता है तो उस दिन को शुभ कार्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता है क्योंकि इस स्थिति में दग्ध नामक अशुभ योग बनता है।

7.शनिवार के साथ अगर गोचरवश रेवती नक्षत्र का संयोग होता है तो इनके फल के रूप में इस योग का जन्म होता है।

इस योग में सभी प्रकार के शुभ कार्य सहित यात्रा नहीं करने की सलाह दी जाती है। यात्रा के सम्बन्ध में यह योग बहुत ही अशुभ माना जाता है।



यमघण्ट योग 

नक्षत्र एवं वार के संयोग से बनने वाला एक अन्य अशुभ योग है यमघण्ट योग !आइये देखें कि यह योग कैसे बनता है।

1. रविवार के दिन के साथ जब मघा नक्षत्र का संयोग होता है तो इसके फल के रूप में यमघण्ट नामक अशुभ योग बनता है।

2.सोमवार के दिन साथ जब विशाखा नक्षत्र का मिलाप होता है तो अशुभ यह योग जन्म लेता है।

3.आर्द्रा नक्षत्र जब गोचरवश मंगल के साथ संयोग करता है तब इस स्थिति में यमघण्ट नामक योग बनता है।

4.बुधवार और मूल नक्षत्र जब मिलता है तब भी यह अशुभ योग बनता है।

5.कृतिका नक्षत्र जब बृहस्पतिवार को पड़ता है तो उस दिन को शुभ काम के लिए वर्जित माना जाता है क्योंकि इन स्थितियों में यमघण्ट नामक योग बनता है।

6.जिस शुक्रवार को रोहिणी नक्षत्र पड़ता वह शुक्रवार इस योग के प्रभाव में रहता है।

7.गोचरवश जब शनिवार हस्त नक्षत्र में पड़ता है तो उस दिन को मांगलिक कार्य के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि नक्षत्र और वार के संयोग से यमघण्ट नामक अशुभ योग बनता है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस योग में यात्रा सहित कोई भी शुभ काम नहीं करना चाहिए.




अक्षय तृतीया




अक्षय तृतीया को सामन्यतया अखतीज के नाम से भी पुकारा जाता है. अक्षय का अर्थ है जो कभी भी खत्म नहीं होता. हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह दिन सौभाग्य और सफलता की सूचक है. इस दिन को सर्वसिद्धि मुहूर्त दिन भी कहये है क्योंकि इस दिन शुभकाम के लिये पंचांग देखने की जरूरत नहीं होती.

01= यदि आप कुछ अचल सम्पत्ति, सोना, चांदी या दीर्घावधि के लिये कुछ खरीद करने जा रहे हैं तो यह दिन इस तरह की खरीददारी के लिये सर्वाधिक उपयुक्त है. हीरा या गहने भी इस शुभदिन पर खरीदे जा सकते हैं. इस दिन सोना की बहुत अधिक मात्र में खरीदा जाता है.

02= अक्षय तृ्तीया के दिन आप अपना व्यवसाय की शुरूआत भी कर सकते हैं.
किसी मकान के बनाने के लिये नींव की खुदाई के लिये भी यह शुभदिन माना जाता है!

03= चूंकि इस दिन विवाहों के लिये किसी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती इसलिये इस दिन राजस्थान में भारी संख्या मे बाल विवाह करने की कु-रीति भी फैली हुई है!

04= हिन्दू मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग की शुरुआत इसी दिन से हुई है और अमृत जल वाली पवित्र नदी गंगा भी इसी दिन धरती पर आई है!

05= अक्षय तृ्तीया विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्मदिन के रूप में मनायी जाती है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य और चन्द्रमा इस दिन उच्चस्थ स्थिति में होते हैं!



इस दिन उपवास रखते हैं और जौ, सत्तू, अन्न तथा चावल से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है! इस दिन सुबह ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर गंगा या किसी नदी अथवा समुद्र में स्नान करें. विष्णु की मूर्ति को स्नान कराकर तुलसी पत्र चढ़ायें. इस दिन को नवन्न पर्व भी कहते हैं. इस दिन बरतन, पात्र, मिष्ठान्न, तरबूजा, खरबूजा दूध दही चावल का दान दें.


मूहूर्त के अनुसार विवाह में वर्जित काल 

वैवाहिक जीवन की शुभता को बनाये रखने के लिये यह कार्य शुभ समय में करना उतम रहता है. अन्यथा इस परिणय सूत्र की शुभता में कमी होने की संभावनाएं बनती है. कुछ समय काल विवाह के लिये विशेष रुप से शुभ समझे जाते है. इस कार्य के लिये अशुभ या वर्जित समझे जाने वाला भी समय होता है. जिस समय में यह कार्य करना सही नहीं रहता है. आईये देखे की विवाह के वर्जित काल कौन से है.:-

1. नक्षत्र व सूर्य का गोचर 

27 नक्षत्रों में से 10 नक्षत्रों को विवाह कार्य के लिये नहीं लिया जाता है ! इसमें आर्दा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुणी, उतराफाल्गुणी, हस्त, चित्रा, स्वाती आदि नक्षत्र आते है. इन दस नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो व सूर्य़ सिंह राशि में गुरु के नवांश में गोचर कर तो विवाह करना सही नहीं रहता है.

2. जन्म मास, जन्मतिथि व जन्म नक्षत्र में विवाह 

इन तीनों समयावधियों में अपनी बडी सन्तान का विवाह करना सही नहीं रहता है. व जन्म नक्षत्र व जन्म नक्षत्र से दसवां नक्षत्र, 16वां नक्षत्र, 23 वां नक्षत्र का त्याग करना चाहिए !

3. शुक्र व गुरु का बाल्यवृ्द्धत्व 

शुक्र पूर्व दिशा में उदित होने के बाद तीन दिन तक बाल्यकाल में रहता है. इस अवधि में शुक्र अपने पूर्ण रुप से फल देने में असमर्थ नहीं होता है. इसी प्रकार जब वह पश्चिम दिशा में होता है. 10 दिन तक बाल्यकाल की अवस्था में होता है. शुक्र जब पूर्व दिशा में अस्त होता है. तो अस्त होने से पहले 15 दिन तक फल देने में असमर्थ होता है व पश्चिम में अस्त होने से 5 दिन पूर्व तक वृ्द्धावस्था में होता है. इन सभी समयों में शुक्र की शुभता प्राप्त नहीं हो पाती है.

गुर किसी भी दिशा मे उदित या अस्त हों, दोनों ही परिस्थितियों में 15-15 दिनों के लिये बाल्यकाल में वृ्द्धावस्था में होते है.

उपरोक्त दोनों ही योगों में विवाह कार्य संपन्न करने का कार्य नहीं किया जाता है. शुक्र व गुरु दोनों शुभ है. इसके कारण वैवाहिक कार्य के लिये इनका विचार किया जाता है.

4. चन्द्र का शुभ/ अशुभ होना 

चन्द्र को अमावस्या से तीन दिन पहले व तीन दिन बाद तक बाल्य काल में होने के कारण इस समय को विवाह कार्य के लिये छोड दिया जाता है. ज्योतिष शास्त्र में यह मान्यता है की शुक्र, गुरु व चन्द्र इन में से कोई भी ग्रह बाल्यकाल में हो तो वह अपने पूर्ण फल देने की स्थिति में न होने के कारण शुभ नहीं होता है. और इस अवधि में विवाह कार्य करने पर इस कार्य की शुभता में कमी होती है.


5. तीन ज्येष्ठा विचार 


विवाह कार्य के लिये वर्जित समझा जाने वाला एक अन्य योग है. जिसे त्रिज्येष्ठा के नाम से जाना जाता है. इस योग के अनुसार सबसे बडी संतान का विवाह ज्येष्ठा मास में नहीं करना चाहिए. इस मास में उत्पन्न वर या कन्या का विवाह भी ज्येष्ठा मास में करना सही नहीं रहता है ! ये तीनों ज्येष्ठ मिले तो त्रिज्येष्ठा नामक योग बनता है.

इसके अतिरिक्त तीन ज्येष्ठ बडा लडका, बडी लडकी तथा ज्येष्ठा मास इन सभी का योग शुभ नहीं माना जाता है. एक ज्येष्ठा अर्थात केवल मास या केवल वर या कन्या हो तो यह अशुभ नहीं होता व इसे दोष नहीं समझा जाता है.

6. त्रिबल विचार

इस विचार में गुरु कन्या की जन्म राशि से 1, 8 व 12 भावों में गोचर कर रहा हो तो इसे शुभ नहीं माना जाता है.

गुरु कन्या की जन्म राशि से 3,6 वें राशियों में हों तो कन्या के लिये इसे हितकारी नहीं समझा जाता है. तथा 4, 10 राशियों में हों तो कन्या को विवाह के बाद दु:ख प्राप्त होने कि संभावनाएं बनती है.

गुरु के अतिरिक्त सूर्य व चन्द्र का भी गोचर अवश्य देखा जाता है !इन तीनों ग्रहों का गोचर में शुभ होना त्रिबल शुद्धि के नाम से जाना जाता है.

7. चन्द्र बल 

चन्द्र का गोचर 4, 8 वें भाव के अतिरिक्त अन्य भावों में होने पर चन्द्र को शुभ समझा जाता है. चन्द्र जब पक्षबली, स्वराशि, उच्चगत, मित्रक्षेत्री होने पर उसे शुभ समझा जाता है अर्थात इस स्थिति में चन्द्र बल का विचार नहीं किया जाता है.

8. सगे भाई बहनों का विचार 

एक लडके से दो सगी बहनों का विवाह नहीं किया जाता है. व दो सगे भाईयों का विवाह दो सगी बहनों से नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त दो सगे भाईयों का विवाह या बहनों का विवाह एक ही मुहूर्त समय में नहीं करना चाहिए. जुडंवा भाईयों का विवाह जुडवा बहनों से नहीं करना चाहिए. परन्तु सौतेले भाईयों का विवाह एक ही लग्न समय पर किया जा सकता है. विवाह की शुभता में वृ्द्धि करने के लिये मुहूर्त की शुभता का ध्यान रखा जाता है.

9. पुत्री के बाद पुत्र का विवाह 

पुत्री का विवाह करने के 6 सूर्य मासों की अवधि के अन्दर सगे भाई का विवाह किया जाता है. लेकिन पुत्र के बाद पुत्री का विवाह 6 मास की अवधि के मध्य नहीं किया जा सकता है. ऎसा करना अशुभ समझा जाता है. यही नियम उपनयन संस्कार पर भी लागू होता है. पुत्री या पुत्र के विवाह के बाद 6 मास तक उपनयन संस्कार नहीं किया जाता है दो सगे भाईयों या बहनों का विवाह भी 6 मास से पहले नहीं किया जाता है.

10. गण्ड मूलोत्पन्न का विचार 

मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाली कन्या अपने ससुर के लिये कष्टकारी समझी जाती है. आश्लेषा नक्षत्र में जन्म लेने वाली कन्या को अपनी सास के लिये अशुभ माना जाता है. ज्येष्ठा मास की कन्या को जेठ के लिये अच्छा नहीं समझा जाता है. इसके अलावा विशाखा नक्षत्र में जन्म लेने पर कन्या को देवर के लिये अशुभ माना जाता है. इन सभी नक्षत्रों में जन्म लेने वाली कन्या का विवाह करने से पहले इन दोषों का निवारण किया जाता है.



पंचक नक्षत्रों की शास्त्रीय विवेचना

पंचक के इन पांच नक्षत्रों में से धनिष्ठा एवं शतभिषा चर संज्ञक, पूर्वाभाद्रपद, उग्र संज्ञक, उत्तरा-भाद्रपद ध्रुव संज्ञक तथा रेवती नक्षत्र मृदु संज्ञक नक्षत्र होता है।

पांच नक्षत्रों ( सैद्धान्तिक रुप से साढेचार) के समूह को पंचक कहते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार राशिचक्र में 360 अंक एवं 27 नक्षत्र होते हैं। इस प्रकार एक नक्षत्र का मान (360-27) 13 अंक एवं 20 कला या 800 कला का होता है। 27 नक्षत्रों में अंतिम पांच नक्षत्रों अर्थात धनिष्ठा का उतरार्ध, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, एवं रेवती को पंचक कहते हैं। चन्द्रमा अपनी मध्यम गति से 27 दिनों में इन सभी नक्षत्रों का भोग कर लेता है। अत: हर महीने में लगभग 27 दिनों के अन्तराल पर पंचक नक्षत्र आते रहते हैं।
एक अन्य मत से पंचकों में धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को अंग दोष होने का विचार किया जाता है. धनिष्ठा नक्षत्र के प्रथम आधे भाग को भी कुछ स्थानों पर शुभ नहीं समझा जाता है !

पांच वर्जित कार्य - 

पंचक में पांच कार्य करने सर्वथा वर्जित माने जाते है! इसमें
01: दक्षिण दिशा की यात्रा,
02: ईंधन एकत्र करना,
03: शव का अन्तिम संस्कार,
04: घर की छत डालना, झोपड़ी बनाना,
05: चारपाई बनवाना, लकड़ी का फर्नीचर शुभ नहीं माना जाता है ! 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन नक्षत्र समय में इनमें से कोई भी कार्य करने पर, उक्त कार्य को पांच बार दोहराना पड सकता है!
पंचक शास्त्रीय विचार 

ज्योतिष के प्रसिद्ध शास्त्र "राजमार्त्तण्ड" के अनुसार ईंधन एकत्र करने, चारपाई बनाने, छत बनवाने, दक्षिण दिशा की यात्रा करने में घनिष्टा नक्षत्र में इनमें से कोई काम करने पर अग्नि का भय रहता है. शतभिषा नक्षत्र में कलह, पूर्वा भाद्रपद में रोग, उतरा भाद्रपद में जुर्माना, रेवती में धन हानि होती है !

पंचक समय में अन्य वर्जित कार्य 

पंचक नक्षत्र समयावधि में लकडी तोडना, तिनके तोडना, दक्षिण दिशा की यात्रा, प्रेतादि- शान्ति कार्य, स्तम्भारोपन, तृ्ण, ताम्बा, पीतल, लकडी आदि का संचय , दुकान, पद ग्रहण व पद का त्याग करना शुभ नहीं होता है ! इसके अलावा मकान की छत, चारपाई, चटाई आदि बुनना त्याज्य होता है! विशेष परिस्थितियों में ये कार्य करने आवश्यक हो तो किसी योग्य विद्वान पंडित से पंचक शान्ति करवाने का विधान है!

दोष निवारण संभव 

ऋषि गर्ग ने कहा है कि शुभ या अशुभ जो भी कार्य पंचकों में किया जाता है, वह पांच गुणा करना पडता है! इसलिये अगर किसी व्यक्ति की मृ्त्यु पंचक अवधि में हो जाती है !तो शव के साथ चार या पांच अन्य पुतले आटे या कुशा से बनाकर अर्थी पर रख दिये जाते है! इन पांचों का भी शव की भांति पूर्ण विधि-विधान से अन्तिम संस्कार किया जाता है! और पंचक दोषों का शांति विधान किया जाता है।

पर किसी कारणवश इन कार्यो को करना पड़ता है तो नक्षत्र स्थिति के अनुसार पंचक दोष निवारण उपाय बताए गए हैं।
यदि पंचक काल में कार्य करना जरूरी है तो धनिष्ठा नक्षत्र के अंत की, शतभिषा नक्षत्र के मध्य की, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के आदि की, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र की पांच घड़ी के समय को छोड़कर शेष समय में कार्य किए जा सकते हैं। रेवती नक्षत्र का पूरा समय अशुभ माना जाता है।

पंचक निषेध काल 

इस तरह पंचक नक्षत्रों में सभी कार्य निषिद्ध नहीं होते। मुहूर्त ग्रन्थों के अनुसार विवाह, मुण्डन, गृहारम्भ, गृ्ह प्रवेश, वधू- प्रवेश, उपनयन आदि में इस समय का विचार नहीं किया जाता है ! इसके अलावा रक्षा -बन्धन, भैय्या दूज आदि पर्वों में भी पंचक नक्षत्रों का निषेध के बारे में नहीं सोचा जाता है !और इसके साथ-साथ व्यावसायिक एवं आर्थिक गतिविधियां संपन्न की जा सकती हैं।



भद्रा योग (विष्टी करण)

भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और शनिदेव की बहन है। 
शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी क्रूर बताया गया है।
इस उग्र स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उसे कालगणना या पंचाग के एक प्रमुख अंग करण में स्थान दिया। जहां उसका नाम विष्टी करण रखा गया। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया।
किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनैतिक चुनाव कार्य सुफल देने वाले माने गए हैं।
पंचक (तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण) की तरह ही भद्रा योग को भी देखा जाता है।

तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं.
इस तरह एक तिथि के दो करण होते हैं.
कुल 11 करण माने गए हैं जिनमें बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि चर करण और शकुनि, चतुष्पद, नाग और किस्तुघ्न अचर करण होते हैं.
विष्टि करण को ही भद्रा भी कहा जाता है.
कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी और शुक्लपक्ष की चतुर्थी, एकादशी के उत्तरार्ध में एवं
कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी, शुक्लपक्ष की अष्टमी और पूर्णिमा के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है.
तिथि के पूर्वार्ध में (कृष्णपक्ष की 7:14 और शुक्लपक्ष की 8:15 तिथि) दिन की भद्रा कहलाती है. तिथि के उत्तरार्ध की (कृष्णपक्ष की 3:10 और शुक्लपक्ष की 4:11) की भद्रा रात्री की भद्रा कहलाती है.

यदि दिन की भद्रा रात्री के समय और रात्री की भद्रा दिन के समय आ जाए तो उसे शुभ माना जाता है.
भद्राकाल में विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश, यज्ञोपवित, रक्षाबंधन या कोई भी नया काम शुरू करना वर्जित माना गया है.

लेकिन भद्राकाल में ऑपरेशन करना, मुकदमा करना, किसी वस्तु का कटना, यज्ञ करना, वाहन खरीदना स्त्री प्रसंग संबंधी कर्म शुभ माने गए हैं.
सोमवार व शुक्रवार की भद्रा कल्याणी,
शनिवार की भद्रा वृश्चिकी,
गुरुवार की भद्रा पुण्यैवती,
रविवार, बुधवार व मंगलवार की भद्रा भद्रिका कहलाती है.
शनिवार की भद्रा अशुभ मानी जाती है!



शनि की सगी बहन है भद्रा 

भद्रा भगवान सूर्य का कन्या है। सूर्य की पत्नी छाया से उत्पन्न है और शनि की सगी बहन है। यह काले वर्ण, लंबे केश, बड़े-बड़े दांत तथा भयंकर रूप वाली है। सूर्य भगवान से सोचा इसका विवाह किसके साथ किया जाए। प्रचा के दु:ख को देखकर ब्रह्माजी ने भी सूर्य के पास जाकर उनकी कन्या द्वारा किये गये दुष्कर्मो को बतलाया।

यह सुनकर सूर्य ने कहा आप इस विश्व के कर्ता तथा भर्ता हैं, फिर आप कहें। ब्रह्माजी ने विष्टि को बुलाकर कहा- भद्रे! बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में तुम निवास करो और जो व्यक्ति यात्रा, प्रवेश, मांगल्य कृत्य, रेवती, व्यापार, उद्योग आदि कार्य तुम्हारे समय में करे, उन्हीं में तुम विघ्न करो। तीन दिन तक किसी प्रकार की बाधा न डालो। चौथे दिन के आधे भाग में देवता और असुर तुम्हारी पूजा करेंगे। जो तुम्हारा आदर न करे, उनका कार्य तुम ध्वस्त कर देना। इस प्रकार से भद्रा की उत्पत्ति हुई। अत: मांगलिक कार्यो में अवश्य त्याग करना चाहिए।

भद्रा 5 घड़ी मुख में, 2 घड़ी कंड में, 11 घड़ी हृदय में, 5 घड़ी नाभि में, 5 घड़ी कटि में और 3 घड़ी पुच्छ में स्थिर रहती है। जब भद्रा मुख में रहती है तब कार्य का नाश होता है। कंड में धन का नाश, हृदय में प्राण का नाश, नाभि में कहल, कटि में अर्थ-भंश होता है तथा पुच्छ में विजय तथा कार्य सिद्धि हो जाती है।

भद्रा के 12 नामों का (धन्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारुद्रा, विष्टि, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली तथा असुरक्षयकरी) प्रात:काल उठकर जो स्मरण करता है उसे किसी भी व्याधि का भय नहीं होता। रोगी रोग से मुक्त हो जाता है और सभी ग्रह अनुकूल हो जाते हैं। उसके कार्यो में कोई विघ्न नहीं होता। युद्ध में तथा राजकुल में वह विजय प्राप्त करता है जो विधि पूर्वक नित्य विष्टि का पूजन करता है, नि:संदेह उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं।



राहु-काल : 

शुभ कार्यो में विशेष रुप से त्याज्य है!

समय के दो पहलू है.
पहले प्रकार का समय व्यक्ति को ठीक समय पर काम करने के लिये प्रेरित करता है. तो दूसरा समय उस काम को किस समय करना चाहिए इसका ज्ञान कराता है,
पहला समय मार्गदर्शक की तरह काम करता है. जबकि
दूसरा पल-पल का ध्यान रखते हुये कभी चन्द्र की दशाओं का तो कभी राहु काल की जानकारी देता है!

राहु-काल का महत्व :

राहु-काल व्यक्ति को सावधान करता है! कि यह समय अच्छा नहीं है इस समय में किये गये कामों के निष्फल होने की संभावना है! इसलिये, इस समय में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाना चाहिए! कुछ लोगों का तो यहां तक मानना है की इससे किये गये काम में अनिष्ट होने की संभावना रहती है !

दक्षिण भारत में प्रचलित:

राहु काल का विशेष प्रावधान दक्षिण भारत में है. !यह सप्ताह के सातों दिन निश्चित समय पर लगभग डेढ़ घण्टे तक रहता है. इसे अशुभ समय के रुप मे देखा जाता है. इसी कारण राहु काल की अवधि में शुभ कर्मो को यथा संभव टालने की सलाह दी जाती है!

राहु काल अलग- अलग स्थानों के लिये अलग-2 होता है. इसका कारण यह है की सूर्य के उदय होने का समय विभिन्न स्थानों के अनुसार अलग होता है. इस सूर्य के उदय के समय व अस्त के समय के काल को निश्चित आठ भागों में बांटने से ज्ञात किया जाता है!

दिन के आठ भाग :

सप्ताह के पहले दिन के पहले भाग में कोई राहु काल नहीं होता है ! यह सोमवार को दूसरे भाग में, शनि को तीसरे, शुक्र को चौथे, बुध को पांचवे, गुरुवार को छठे, मंगल को सांतवे तथा रविवार को आंठवे भाग में होता है ! 

यह प्रत्येक सप्ताह के लिये स्थिर है. राहु काल को राहु-कालम् नाम से भी जाना जाता है!
सामान्य रुप से इसमें सूर्य के उदय के समय को प्रात: 06:00 बजे का मान कर अस्त का समय भी सायं काल 06:00 बजे का माना जाता है. 12 घंटों को बराबर आठ भागों में बांटा जाता है. प्रत्येक भाग डेढ घण्टे का होता है. वास्तव में सूर्य के उदय के समय में प्रतिदिन कुछ परिवर्तन होता रहता है!

एक दम सही भाग निकालने के लिये सूर्य के उदय व अस्त के समय को पंचाग से देख आठ भागों में बांट कर समय निकाला जाता है. इससे समय निर्धारण में ग़लती होने की संभावना नहीं के बराबर रहती है-

संक्षेप में यह इस प्रकार है:- 

• 1. सोमवार :सुबह 7:30 बजे से लेकर प्रात: 9.00 बजे तक का समय इसके अन्तर्गत आता है.
• 2. मंगलवार : राहु काल दोपहर 3:00 बजे से लेकर दोपहर बाद 04:30 बजे तक होता है.
• 3. बुधवार: राहु काल दोपहर 12:00 बजे से लेकर 01:30 बजे दोपहर तक होता है.
• 4. गुरुवार : राहु काल दोपहर 01:30 बजे से लेकर 03:00 बजे दोपर तक होता है.
• 5. शुक्रवार : राहु काल प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक का होता है.
• 6. शनिवार: राहु काल प्रात: 09:00 से 10:30 बजे तक का होता है.
• 7. रविवार: राहु काल सायं काल में 04:30 बजे से 06:00 बजे तक होता है.


राहु काल के समय में किसी नये काम को शुरु नहीं किया जाता है परन्तु जो काम इस समय से पहले शुरु हो चुका है उसे राहु-काल के समय में बीच में नहीं छोडा जाता है. कोई व्यक्ति अगर किसी शुभ काम को इस समय में करता है तो यह माना जाता है की उस व्यक्ति को किये गये काम का शुभ फल नहीं मिलता है. उस व्यक्ति की मनोकामना पूरी नहीं होगी. अशुभ कामों के लिये इस समय का विचार नहीं किया जाता है. उन्हें दिन के किसी भी समय किया जा सकता है.




यात्रा का मुहुर्त-01




मनुष्य विभिन्न उद्देश्यों और कार्यों से जीवन में समय समय पर यात्रा करते। जब हम किसी विशेष उद्देश्य या कार्य से यात्रा करते हैं तो हमारी अपेक्षा रहती है कि जिस प्रयोजन मे हम यात्रा कर रहे हें उसमें हमें सफलता प्राप्त हो।

यात्रा कैसी होगी व यात्रा से अनुकूल परिणाम प्राप्त होगा या नहीं यह उस मुहुर्त पर निर्भर करता जिसमें हम यात्रा करते हैं। ज्योतिषशास्त्री कहते हैं कि यात्रा के विषय में जब मुहुर्त का आंकलन किया जाता है तब देखा जाता है कि -

यात्रा का उद्देश्य क्या है,
कितनी दूरी तक यात्रा करनी है,
यात्रा का मार्ग क्या है अर्थात जलमार्ग, वायु मार्ग, सड़क मार्ग या रेल मार्ग में से किस मार्ग से आप यात्रा कर रहे हैं। 


ध्यान देने वाली बात यह है कि दैनिक या रोजमर्रा की यात्रा के प्रसंग में मुहुर्त का विचार नहीं किया जाता है।लेकिन यात्रा के प्रसंग में मुहुर्त देखने के निम्न सामान्य नियम है--

1.नक्षत्र आंकलन 

यात्रा पर जाने से पहले नक्षत्रों की स्थिति का विचार करना चाहिए। अगर यात्रा के दिन हस्त अश्विनी,पुष्य, मृगशिरा, रेवती, अनुराधा, पुनर्वसु, श्रवण, घनिष्ठा नक्षत्र हो तो यात्रा अनुकूल और शुभ रहता है आप इस नक्षत्र में यात्रा कर सकते है। इन नक्षत्रों के अलावा आप उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद में भी यात्रा कर सकते हैं हलांकि ये नक्षत्र इस प्रसंग में मध्यम स्तर के माने जाते हैं।

2.नक्षत्र शूल 

यात्रा करते समय दिशा का विचार भी करना भी जरूरी होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सभी नक्षत्रों की अपनी दिशा होती है, जिस दिन जिस दिशा का नक्षत्र हो उस दिन उस दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए. आइये इसके लिए एक उदाहरण देखें:

अ.ज्येष्ठा नक्षत्र की दिशा पूर्व होती है अत: जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन पूर्व दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए।

ब्.पूर्वाभाद्रपद की दिशा दक्षिण होती है, अत: पूर्वाभाद्रपद वाले नक्षत्र के दिन दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए। दक्षिण के अलावा आप इस नक्षत्र में किसी भी दिशा में यात्रा कर सकते हैं।

स्.रोहिणी नक्षत्र की दिशा पश्चिम होती है। इस दिशा में रोहिणी नक्षत्र में यात्रा नहीं करनी चाहिए।

द्.उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र की दिशा उत्तर है। जिस दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र हो उस दिन उत्तर दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए। इस नक्षत्र में उत्तर दिशा के अलावा किसी अन्य नक्षत्र में यात्रा कर सकते हैं।
जिस दिशा में आपको यात्रा करनी हो उस दिशा का नक्षत्र होने पर नक्षत्र शूल लगता है अत: नक्षत्र की दिशा में यात्रा करने से बचना चाहिए।

3.तिथि विचार 

जब आप यात्रा के लिए मुहुर्त का विचार करें तो ध्यान रखें कि तिथि कौन सी है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यात्रा के लिए द्वितीया, तृतीया, पंचमी, दशमी, सप्तमी, एकादशी और त्रयोदशी तिथि बहुत ही शुभ मानी गयी है। कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि भी यात्रा के संदर्भ में उत्तम मानी जाती है । उपरोक्त तिथियों के अलावा जो भी तिथियां हैं वे यात्रा के लिए शुभ नहीं मानी जाती हैं।

4.करण 

विष्टि करण होने से भद्रा दोष लगता है, इस स्थिति में यात्रा नहीं करनी चाहिए.

5.वार विचार 

यात्रा के लिए बृहस्पति और शुक्रवार को सबसे अच्छा माना जाता है। रविवार, सोमवार और बुधवार को यात्रा की दृष्टि से मध्यम माना जाता है। ज्योतिर्विदों के अनुसार मंगलवार और शनिवार यात्रा के लिए शुभ नहीं होते हैं अत: संभव हो तो इस तिथि में यात्रा नहीं करें.




यात्रा का मुहुर्त- 2


यात्रा का मुहुर्त के दुसरे भाग में वारशूल,योग,चन्द्रन िवास,सम्मुख शुक्र एवं परिघ दण्ड यात्रा के संदर्भ में क्या प्रभाव डालते हैं और इनका आंकलन किस प्रकार किया जाता है। 

इन के अलावा.
आप श्राधों में पड़ने वाली अष्टमी तिथि में आप जमीन जायदाद खरीद सकते हैं,
आप चौंक गए होंगे कि श्राधों में......... नही आप निश्चिन्त रहें. 
यह सिद्ध अष्टमी है इस दिन को महालक्ष्मी अष्टमी के नाम से हाना जाता है.
लोग जमीन जायदाद खरीदने के लिए इस दिन का इंतज़ार करते हैं.


एक बात और .......
किसी भी महूरत के इंतज़ार कि कोई जरूरत नही.
आप कभी भी, किसी दिन भी कुछ भी मंगल कार्य कर सकते हैं 
समय होगा यही कोई बाढ़ बजे के आस-पास. 
( समय सूर्य उगने के साथ साथ थोड़ा आगे पीछे होता रहता है)
इस समय अभिजित महूर्त होता है 
कोई भी मंगल कार्य इस समय किया जा सकता है.
इस अभिजित महूर्त में भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था.


Monday, June 6, 2011


The values ​​of digits in your date of birth

  • According to figures in the date of birth and your name, you can determine how the rest for you the coming year and how it can be used for the benefit of themselves. Will not be given in the figure studies. But in numerology life path moves in endless cycles of the individual from the "zero" through "nine." And with the help of different algorithms, evaluates your ID card! (Life course). The exact calculation you can make from the menu above.
  • What is Numerology?
    In numerology, all words, names and numbers can be reduced to single digits of which correspond to certain occult characteristics that influence a person's life. That is, in numerology for each unique number assigned certain properties, concepts and images. Numerology use when analyzing a person's character to determine the nature, natural gifts, strengths, weaknesses, and predict the future, to choose the best place to live, open the most suitable time for decision making and action. Some people also use numerology to choose a partner - in business, marriage, and in society.
  • Ancient knowledge, the prisoners in the numbers
    Number - a symbol that expresses an idea, an abstraction. Many scientists agree that any possible knowledge is present in the mind in abstract form. The figures also - this is a language of communication. We express our thoughts through language, based on numerical symbolism.Carl Jung said that the number was preceded by consciousness and soon discovered the man, not invented. In his view, the numbers are probably the most primitive element of order in thought and subconsciously used as an organizing factor. Pythagoreans believed that all things are numbers and their components are elements of all things.Over the centuries, some number were set higher than others. In various cultures, some number of esteemed sacred, and some - a dangerous, unhappy characters.